Friday 16 May 2014

शिव उपासना कल्पवृक्ष प्राप्ति के समान

शिव की उपासना मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष की प्राप्ति के समान है। भगवान शिव से जिसने जो चाहा उसे प्राप्त हुआ। महामृत्युंजय शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि ने अमरत्व प्राप्त किया और महाप्रलय को देखने का अवसर प्राप्त किया।

आचार्य जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि देवता, दानव और मनुष्य ही नहीं समस्त चरा-चर का कोई ईश्वर है तो वह है सदा शिव, भगवान शिव अपने पास कुछ नहीं रखते बल्कि सब कुछ अपने भक्तों को दे देते हैं।

भस्मासुर का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने कहा शिव से वरदान लेने वालों को सावधानी भी रखनी चाहिए। शिव से वरदान लेकर अशिव कार्य करने से स्वयं की ही हानि होती है। श्री शैल शिखर पर विराजमान भगवान शिव की सेवा में संपूर्ण प्रकृति रहती है। मंदसुगंध पवन वन वृक्षों के स्पंदन से चंवर डुलाती है तो बांज-बुरांश, कुटज पुष्पों से उनका प्राकृतिक श्रृंगार होता रहता है।

उमड़ते घुमड़ते मेघ वर्षा से उनका सतत अभिषेक करते हैं, रात्रि में चंद्र किरणें हिम-तुषार किरणों से आच्छादन सेवा करते हैं। ऐसे आशुतोष भगवान के द्वार में जाकर भक्तजन श्रद्धा से नतमस्तक होकर धन्य हो जाते हैं।

उन्होंने कहा कि 'हरिनाम संकीर्तन एवं प्रभु सुमिरण में ऐसी महाशक्ति है जो जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी बाधाओं का पहले ही निवारण कर देती है। वस्तुतः बाधाएँ तो क्या भगवान के नाम का प्रभाव महाप्रलय की दिशा बदने की क्षमता रखता है।' महंत जी ने कहा, मनुष्य को अपने व्यस्त जीवन में हरिनाथ सुमिरण के लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए। यही मनुष्य के जीवन का असली खजाना होता है।

महात्मा-गुरु के शब्दों के प्रभाव से मनुष्य का विवेक जागता है। उस विवेक के माध्यम से वह ईश्वर को प्राप्त करता है। गुरु के शब्दों में वह प्रभाव है कि जीव का भ्रम समूल नष्ट हो जाता है अतः अभय पद की प्राप्ति गुरु कृपा से ही संभव है। उन्होंने कहा गुरु वही है जो शिष्य को मार्ग दिखाता है न कि उसे केवल अपने तक ही अटकाए रखता है। अतः सद्गुरु के वचनों को अपने हृदय में धारण करना चाहिए उसी से मनुष्य का कल्याण संभव है।

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