Friday 16 May 2014

शिवलीन हुए भक्त

श्रावण मास के प्रथम सोमवार को सुबह की रिमझिम फुहारों को देख लगा कि स्वयं इंद्रदेव भी देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक करने आ पहुँचे हैं। अमूमन हर शिवालय पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। अनेक मंदिरों के सामने तो श्रद्धालुओं की कतारें सड़क तक आ पहुँची थीं। बाहर पूजन सामग्रियों की जमकर खरीदारी हुई।

स्वर्ण कलश से भोलेनाथ का सतत गौ दुग्ध धारा से अभिषेक कर झमाझम बारिश की सामूहिक प्रार्थना की गई। शिव मंदिर में भगवान का बिल्व पत्रों, पुष्पों व दूध से अभिषेक कर शिव-परिवार का रूद्राभिषेक किया। भगवान भोलेनाथ का सूखे मेवों और रंगबिरंगी चूड़ियों से आकर्षक श्रृंगार किया गया। शाम को गणपति-गजानन स्वरूप में भगवान को सजाकर सूखे मेवों से मनोहारी श्रृंगार किया गया।

समूचे मंदिर परिसर की आकर्षक पुष्प व विद्युत सज्जा की गई है। सवा ग्यारह लाख ॐ नमः शिवाय मंत्रों का जाप, 51 हजार पार्थिव शिवलिंगों का पूजन, रूद्री पाठ, शिवपुराण पाठ, आरती, प्रसाद वितरण आदि अनुष्ठान हुए।

शिव पूजा की महिमा अनंत :- भगवान शिव की आराधना यदि श्रद्धा और विश्वास के साथ की जाए तो कभी निष्फल नहीं होती। शिव जल्दी प्रसन्न होने वाले हैं। उनके स्मरण, ध्यान-दर्शन एवं पूजन से श्रावण मास में अच्छी वर्षा होती है, क्योंकि उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय जल ही है। शिव का पूजन मृत्यु को बचाने या उसका भय कम करने के लिए भी होता है। शिव पूजा की महिमा अनंत है।

शिव आराधना से भय, क्रोध, कामना एवं काम से भी मुक्ति मिलती है। ईश्वर तो सर्वत्र और सर्वदा है, उसे इधर-उधर नहीं खुद अपने अंतर्मन में ही खोजने का प्रयास करना चाहिए। बाह्य आँखों और अन्य इंद्रियों से केवल जगत के दर्शन होंगे, मन की आँखों से कोशिश करेंगे तो जगदीश भी मिल जाएँगे।

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