Wednesday 2 April 2014

पूजा एवं शिव अभिषेक

महाशिवरात्रि व्रत को अर्धरात्रि व्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिये, चाहे यह तिथि पूर्वा (त्रयोदशीयुक्त ) हो, चाहे परा हो | नारद संहिता के अनुसार जिस दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीतिथि आधी रातके योगवाली हो उस दिन जो शिवरात्रिव्रत करता है , वह अनंत फल को प्राप्त करता है |

महाशिवरात्रि को रात्रि के चारों प्रहारों की पूजा का विधान है | सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घरपर ही (यदि नर्मदेश्वर अथवा इसी प्रकार का शिवलिंग हो) सुविधा अनुसार पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर और तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजाका इस प्रकार संकल्प करे –


ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये |


व्रती को पूजा की सामग्री अपने पास रखनी चाहिये – ऋतुकाल फल – पुष्प , गंध  (चन्दन), बिल्वपत्र, धतुरा , धूप , दीप और नैवैध आदिद्वारा चारो प्रहरकी पूजा करनी चाहिये | दूध , दही , घी , शहद और शक्करसे अलग – अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृतसे शिवको स्नान कराकर जलधारा से उनका अभिषेक करना चाहिये | चारों पूजनो में पंचोपचार अथवा षोड़शोउपचार , यथालब्धोपचारसे पूजन करते समय शिवपञ्चाक्षर ‘नमः शिवाय’ मंत्रसे अथवा रूद्र पाठ से भगवान् का जलाभिषेक करना चाहिए |

भव, शर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान  – इन आठ नामोंसे पुष्पांजलि अर्पितकर भगवानकी आरती और परिक्रमा करनी चाहिये |

अंतमें भगवान शम्भूसे इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिये -

‘हे महादेव ! आपकी आज्ञासे मैंने जो व्रत किया , हे स्वामिन ! वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया | अतः अब उसका विसर्जन करता हूँ | हे देवेश्वर शर्व ! यथाशक्ति किये गये इस व्रतसे आप आज मुझपर कृपा करके संतुष्ट  हों |’

अशक्त होने पर यदि चारों प्रहर की पूजा न हो सके तो पहले प्रहर की पूजा अवश्य करनी चाहिये और अगले दिन प्रात:काल पुनः स्नानकर भगवान् शंकर की पूजा करने के पश्चात व्रत की पारणा करनी चाहिये |

स्कन्दपुराण के अनुसार इस प्रकार अनुष्ठान करते हुए शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्यका पुनर्जन्म नहीं होता |

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