आरती करत जनक कर जोरे। |
बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥ |
जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए। |
सब भूपन के गर्व मिटाए॥ |
तोरि पिनाक किए दुइ खंडा। |
रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥ |
आई सिय लिए संग सहेली। |
हरषि निरख वरमाला मेली॥ |
गज मोतियन के चौक पुराए। |
कनक कलश भरि मंगल गाए॥ |
कंचन थार कपूर की बाती। |
सुर नर मुनि जन आए बराती॥ |
फिरत भांवरी बाजा बाजे। |
सिया सहित रघुबीर विराजे॥ |
धनि-धनि राम लखन दोउ भाई। |
धनि दशरथ कौशल्या माई॥ |
राजा दशरथ जनक विदेही। |
भरत शत्रुघन परम सनेही॥ |
मिथिलापुर में बजत बधाई। |
दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥ |
Wednesday 2 April 2014
सोमवार व्रत की आरती
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